• November 22, 2024

उत्तराखंड: साहित्यकार महावीर रवांल्टा को ‘लोक भाषा सेवी’ सम्मान

 उत्तराखंड: साहित्यकार महावीर रवांल्टा को ‘लोक भाषा सेवी’ सम्मान

पिथौरागढ़: पिथौरागढ़ में आयोजित दो दिवसीय कुमाऊंनी भाषा सम्मेलन में देश के ख्यातिलब्ध साहित्यकार महावीर रवांल्टा को लोक भाषा सेवी सम्मान से सम्मानित किया गया। साथ ही पिथौरागढ़ के डॉ. पीतांबर अवस्थी, मुन्नी पांडे और बागेश्वर के मोहन जोशी को आदलि कुशलि की ओर से कुमाऊंनी भाषा सेवी सम्मान प्रदान दिया गया। वहीं, दिल्ली की इजा बा संस्कार कुटीर रमेश हितैषी और संगीत के क्षेत्र में रवि शास्त्री व गीता पंत को भी उनकी उल्लेखनीय कार्यों के लिए सम्मानित किया गया।

कुमाऊं, गढ़वाल के साथ ही नेपाल भी साहित्यकार पहुंचे

आदलि कुशलि मासिक पत्रिका की ओर से आयोजित सम्मेलन में कुमाऊं, गढ़वाल के साथ ही नेपाल भी साहित्यकार पहुंचे। सम्मेलन के दूसरे दिन लोक भाषा व्यवहार में पर हेम पंत ने अपनी भाषा साहित्य में सरलीकरण पर जारी दिया। कृपाल सिंह शीला ने कहा कि बच्चों को बोली भाषा से जोड़ने के लिए कुमाउंनी पाठ्यक्रम बनाया जाना आवश्चक है। भूपेंद्र सिंह ने घरों में अपनी दुदबोलि में ही बोलने पर जोर दिया।

जागरूकता की आवश्यकता है : महावीर रवांल्टा

वरिष्ठ साहित्यकार महावीर रवांल्टा ने कहा कि लोक भाषाओं पर सरकार की अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं। हमें जागरूकता की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि लोक भाषा को बचाने के लिए लोग अपने-अपने स्तर पर काम कर रहे हैं। ऐसे प्रयासों को सामूहिकता से करना होगा। उन्होंने कहा कि लोक भाषा हमारे लोक जीवन का आधार है। अगर लोक भाषा ही संकट में होती तो लोक जीवन पर भी उसका असर साफतौर पर नजर आएगा।

गढ़वाली और कुमाउंनी भाषा बोलने की शैली में ही फर्क

जगमोहन रावत ने कहा कि गढ़वाली और कुमाउंनी भाषा बोलने की शैली में ही फर्क है। दोनों भाषाएं समान हैं। कुमाऊंनी और नेपाली भाषा के बीच संबंध विषय पर नेपाल के कर्ण दयाल ने कहा कि कुमाउंनी और नेपाली भाषा की भाव शैली एक ही है। पूर्व सांसद पूरन दयाल का कहना है कि नेपाल और भारत में रोटी बेटी का संबंध है। इस कारण हमारी संस्कृति बोली भाषा एक जैसी है।

खुले सत्र में सवाल-जवाब

इस अवसर पर कुमाउंनी बोली, भाषा पर खुले सत्र में सवाल-जवाब के जरिए चर्चा की गई। जोहार-मुनस्यार से आए जोहारी भाषा के जानकार भूपेंद्र बृजवाल ने कहा कि जोहारी भी कुमाउंनी की ही उपबोली है, जो हमेशा अछूती रह जाती है। इस भाषा को मुख्य धारा से जोड़ने की आवश्यकता है। आदलि कुशलि पत्रिका की संपादक सरस्वती कोहली ने सभी का आभार व्यक्त किया।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related post

Share