सबसे बड़ा सरकारी पत्रकार बनने की हसरत!
मैंने सपना देखा- एक बड़े राजनीतिक दल का सबसे बड़ा नेता चुनाव हारने पर रो रहा है। मैं उससे कह रहा हूं कि रोइए मत, हार-जीत तो लगी ही रहती है। कल आप सत्ता में थे, अब विपक्षी नेता की भूमिका निभाइयेगा। जो अब सरकार बनाएंगे कल वो विपक्ष में थे। सियासत का यही चक्र है।
चुनाव हारने वाले नेता ने रोते-रोते मुझे जवाब दिया- मुझे न चुनाव हारने का और न सत्ता जाने का ज्यादा दुख है। मैं तो दूसरी वजह से रो रहा हूं।
मैंने पूछा कौन सी वजह ?
नेता बोला- जो अपने थे अब पराए हो जाएंगे। कल मैं सत्ता में था तो आप जैसे पत्रकार अपने खैरख्वाह थे, मुझे महिमा मंडित करते थे और विपक्ष की आलोचना करते थे। अब मैं सत्ता में नहीं रहु़ंगा तो आप मुझे बुरा-भला लिखेंगे, मेरी ख़ूब आलोचना करेंगे। कल आपको मुझमें ख़ूबियां दिखती थीं, अब आपकी नज़र में मुझमें कीड़े पड़ जाएंगे।
मैंने कहां सच कह रहे हैं। अब तो आप विपक्षी नेता हो जाएंगे, सत्ता पर सवाल उठाएंगे। आपके पास मुझे ज्यादा देर तक खड़ा होना भी गवारा नहीं होगा। आइंदा जब आप सत्ता को घेरने का दुस्साहस करेंगे तो आपको सबक सिखाने आऊंगा। सत्ता पक्ष की तरफ से जब विपक्ष को घेरने वाले सवालों की फेहरिस्त मुझे मिलेगी तो आपको और आपकी पार्टी को घेरने चला आऊंगा। विपक्ष के ख़िलाफ माहौल बनाऊंगा। और विपक्ष पर सवालों के पर्दे से सत्ता के ऐब छिपाऊंगा। सत्ता की ख़ामियो को छोड़कर विपक्ष की कमियों की सुर्खियों से अख़बार सजाऊंगा। टीवी पर हैडलाइन और टीवी डिबेट में आपके पिछले शासन के घोटालों का शोर मचाऊंगा।
मैं ठहरा सरकारी पत्रकार। आप सत्ता में थे तो आपके थे,अब दूसरा सत्ता में होगा तो हम उसके हो जाएंगे। मेरा सपना है कि एक दिन सत्ता की तारीफें करने वाला सबसे बड़ा सरकारी पत्रकार कहलाऊं। मुझे बहुत बड़ा पत्रकार बनने की हसरत है।
कांग्रेस की सरकार थी तो ख़ुद को बड़ा वाला धर्मनिरपेक्ष बना लिया था, गांधी परिवार की तारीफ लिखता था। यूपीए वन में तो थोड़ा-थोड़ा कम्युनिस्ट भी था। भाजपा सत्ता में आई तो संघ की विचारधारा अपना ली।
मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे तो मुलायमवादी प्लस समाजवादी था। बसपा की सरकार आई तो
बहुजन समाज पर अटूट विश्वास हो गया, बहन मायावती के हाथ से सत्ता गई तो समाजवादी कम अखिलेशवादी हो गया। यूपी में भाजपा की सरकार आई तो अब लगता है कि योगी आदित्यनाथ जी से अच्छा, कुशल और गुड गवर्नेस देने वाला कोई मुख्यमंत्री न कभी था और न कभी हो सकता है।
हार के ग़म में रो रहे नेता जी मेरी बातें सुनकर मुस्कुराने लगे थे।
मैंने आगे उनसे कहा की मेरी हसरत है कि आने वाले वक्त में जब भी कोई पार्टी हारे तो उस पार्टी का सबसे बड़ा नेता आपकी तरह ही रोए। हर हारा हुआ नेता रो-रो कर यही कहे कि मुझे सत्ता न मिलने का या हारने का इतना दुख नहीं जितना दुख इस बात का है कि अब सबसे बड़े सरकारी पत्रकार (यानी मैं) उसकी झूठी तारीफ नहीं झूठी आलोचनाओं से अपना क़लम घिसेगा।
गुफ्तगू अंतिम दौर में पंहुचा चुकी थी। जिस सत्ताधारी नेता के सानिध्य में पिछले पांच साल से था उसका साथ छोड़ने का समय आ गया था। अंदर ही अंदर विचार बदल रहे थे और ऊपर-ऊपर गिरगिट की तरह मेरा रंग बदलता जा रहा था। ताज़ी सत्ता की हरियाली के रंग में रंग जाने के लिए बेचैन था।
दूर कहीं नई सत्ता के शंखनाद की तरफ मैं खिंचता जा रहा था। जिस दिशा भागा उसी रास्ते इतने सारे गिरगिट भागते दिखे कि लगा गिरगिटों की मैराथन हो रही है। कैसे बनुंगा मैं सबसे बड़ा सरकारी पत्रकार !
नींद खुली और सपना टूटा तो देखा कि मैं पसीने-पसीने था।
सचमुच बहुत मुश्किल है सरकार का सबसे ख़ास पत्रकार बनना। क्योंकि इस रेस में किसी की किसी से कम रफ्तार नहीं है।
मैं सबसे आगे कैसे निकलूं ?
नवेद शिकोह वरिष्ठ पत्रकार
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