इंडिया टुडे ग्रुप से GNT आ गया है, भास्कर की तर्ज पर, गुड न्यूज लेकर. अब किसी भी चैनल के शुरू होने पर जनसरोकारी पत्रकारिता की उम्मीद मैं नहीं रखता. शायद दर्शक भी इससे इत्तेफाक रखते हों. ऐसा इसलिए नहीं कि चैनल में काबिल लोग नहीं होते हैं, या संसाधन की कमी होती है, बल्कि इसलिए कि मौजूदा समय में ऐसी जनसरोकारी पत्रकारिता करना आसान नहीं है. आसान इसलिए नहीं क्योंकि इसके लिए सीधे सत्ता से टकराना होगा और पिछले 3 साल में सत्ता से टकराने का हश्र क्या होता है ये ABP न्यूज़, आज तक और सूर्या चैनल से विदा हुए पुण्य प्रसून वाजपेयी सहित बाकि पत्रकार बेहतर जानते हैं. ABP पर तो पतंजलि का विज्ञापन ही रोक दिया गया.
कोई भी चैनल रेवेन्यू के बिना कब तक सर्वाइव करेगा. चैनल के पास चाहे जितनी भी अकूत संपत्ति हो वो एक दिन खत्म होना ही है. इस तरह एक दिन ऐसा होगा जब चैनेल दम तोड़ देगा. 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आते ही मीडिया पहले तो नतमस्तक हुआ, फिर वे आधे झुके और वे लेटकर रेंग रहे हैं. जो सत्ता के खिलाफ गया वो गोया बाजार से गया. इमरजेंसी के बाद से मीडिया की सबसे ज्यादा दुर्गति 2014 से अब तक देखने को मिल रही है. ये मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि यही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया है जिसने UPA के शासन में (2010, 11 से) 2G घोटाला, कोयला घोटाला, आदर्श हाउसिंग घोटाला, कॉमन वेल्थ घोटाले को टीवी पर जमकर दिखाया. सरकार के खिलाफ उठने वाली हर आवाज के चैनल पैरोकार थे. अन्ना आंदोलन से भी कांग्रेस का बेहद नुकसान हुआ और उसे चैनल ने 13 दिन तक दिन रात दिखाया था. नतीजा ये हुआ कि 2014 में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई. तब भी देश में सरकार थी, लेकिन तब और अब में बहुत फर्क आ गया है. तब आवाज को ऐसे कुचला नहीं गया. आज हर उस आवाज को दबाने की, कुचलने की कोशिश की जाती है जिसने सत्ता के खिलाफ हुंकार भरी हो.
जो चैनल या अखबार आज मुनाफे में चल रहे हैं, या जिनके अच्छे दिन गुजर रहे हैं, वे सरकार की हां में हां मिलाकर चल रहे हैं. जिस दिन मुंह फेरा, एजेसियां पीछे छोड़ दी जाएंगी. हाल में आपने भास्कर को देखा होगा.
याद है आपको, TV9 भारतवर्ष बहुत जोर शोर से शुरू हुआ था, अपने तरह का नया स्टूडियो, नया न्यूज़ रूम सब कुछ नया. चैनल के प्रचार प्रसार में केवल जनसरोकारी पत्रकारिता की बात थी, जैसे वो दौर वापस लौट आया हो जब चैनल खुलकर खबर दिखा सकें, अख़बारों में काम करने वाले पत्रकारों के कलम पर कोई बंदिशें न हों. भरोसा ये कि अब TV9 की बदौलत हमें वही देखने को मिलेगा जो बाकी लोग नहीं दिखा रहे हैं. लेकिन यकीन मानिये तो मुझे इस चैनल से भी कभी भी सरोकारी पत्रकारिता की उम्मीद नहीं थी. अब भी जो चैनल लॉन्च हो रहे हैं, सब व्यापार का एक हिस्सा है और कुछ नहीं. क्योंकि आज के समय में यह काम बहुत मुश्किल हो गया है. अगर आप TRP में पीछे तो फिर बात राजस्व की आ जाएगी. और जब बात राजस्व की आती है तो बात यहीं खत्म हो जाती है. हर बनिये को पैसा प्यारा है उसे पैसा चाहिए, जनसरोकार जाए भाड़ में.
नीतेश त्रिपाठी
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