सुपर बैलेंस मीडिया बनाने वाले एंकर-एंकरनियां-विपक्ष जंग में टीवी बनाम डिजिटल एंकर
भारतीय मीडिया की पड़ताल करने के लिए सिर्फ मशहूर टीवी/डिजिटल एंकर चेहरों और उनकी गुफ्तगू पर ग़ौर कीजिए तो बिल्कुल बैलेंस मीडिया दिखाई देगी। लेकिन शर्त ये है कि आपको स्क्रीन मीडिया का संपूर्ण चेहरा देखना पड़ेगा। टीवी का भी और डिजिटल का भी। चेहरे में एक आंख ही देखियागा दूसरी नहीं देखिएगा तो आपको काना पन दिखेगा। इसलिए दोनों पहलुओं को देखना जरूरी है।
दो विपरीत दिशाएं ही बैलेंस बनाती हैं। जैसे जमीन और आसमान, नारी और पुरुष, भूख और भोजन..।
ज्यादातर टीवी एंकर सत्ता पक्ष के सपोर्टर और विपक्ष को सवालों में घेरने की सुपारी लिए हुए दिखते हैं। और डिजिटल मीडिया के कुछ चेहरे सिर्फ विपक्षियों को उठाने और सत्ता को रौंदने की सुपारी लिए हुए लगते हैं।
तो हो गया ना बैलेंस। जिसे सत्ता की खूबियां और उपलब्धियां जाननी हैं या विपक्ष का नाकारा पन, कमजोरियों के पहलुओं को जानना है तो टीवी पर चुन्नू -मुन्नू और कुच्ची-पुच्ची को देखे। सरकार की कमियों, खामियों, बदहालियों, बर्बादियों और विपक्ष की मजबूती, कसीदे, सत्ता मे आने की आशंकाओं का जिक्र ही सुनना चाहते हैं तो आप डिजिटल मीडिया के राजा बाबुओं, चंगू-मंगु , धन्नो-बेबो.. को सुन लीजिए।
कमाल का बैलेंस है।
स्मार्ट फोन आम ना होता। आटे से भी जरूरी डाटा का दौर ना आता। इंटरनेट मीडिया टीवी मीडिया पर हावी ना होता। विपक्षी खेमें को ताकत देने वाला डिजिटल मीडिया अपने शबाब पर नहीं आता तो एकतरफा दिशा में मुड़ रही टीवी मीडिया वाकई भारतीय मीडिया को बदनाम कर देती। लेकिन अब टीवी की एकतरफा पत्रकारिता के सामने डिजिटल का एकतरफा पक्ष दो तरफा यानी बैलेंस मीडिया बन गया है।
तीस-पैतिस वर्ष पहले का दूरदर्शन का जमाना याद कीजिए। एंकर का काम सिर्फ खबरें पढ़ कर सुनाना होता था। सैटेलाइट का दौर आया और फिर धीरे-धीरे एंकर के चेहरे सबसे बड़ी ताकत बनते गए। प्रड्यूसर, एडिटर, रिपोर्टर, इनपुट, आउटपुट, पत्रकारिता और टीवी पत्रकारिता की सारी ताकतों का धीरे-धीरे एंकर के बड़े चेहरे में विलय होता गया। सब इनके आगे पानी भरने लगे। जहर उगलने वाली डिबेट्स के बढ़ते दौर ने पिछले करीब डेढ़ दशक ने एंकर की ताकत और भी बढ़ा दी। कहने को तो एंकर कुछ नहीं तय करता। चैनल, चैनल हेड, उनकी पॉलिसी, बुलेटिन इंचार्ज और एडिटर की तरफ से सब तय होता है। ये बात भी ऐसे ही है कि जैसे कहा जाता है कि शाहरुख खान, आमिर खान, अक्षय कुमार.. जैसे स्टार एक्टर है़, फिल्म का प्रड्यूसर, डायरेक्टर और राइटर तय करता है कि एक्टर को क्या बोलना है और क्या करना है। ये बातें अपनी जगह सही हैं लेकिन जब चेहरे चमक जाते हैं, लोगों के दिलो-दिमाग में उतर आते हैं,जब कोई स्क्रीन का सुपर स्टार बनता है तो बहुत बड़े-बड़े पदों के अधिकार उसके आगे नतमस्तक हो जाते हैं।
शाहरुख खान तय करता है कि उनकी फिल्म की स्क्रिप्ट कैसी हो, उसकी हिरोइन और सह कलाकार कौन हों। म्युजिक कौन बनाए, पीर कंपनी और डिस्ट्रीब्यूटर कौन हो।
इसी तरह सुधीर चौधरी हों या अंजना ओम कश्यप ,टीवी स्क्रीन के ये स्टार एंकर बहुत कुछ खुद तय करते हैं।
इसीलिए इंडिया गंठबंधन ने कुछ एंकर्स के डिबेट शो में ना जाने का फैसला किया है।
अब खबर ये भी है कि जिस तरह कांग्रेस और उसके इंडिया गंठबंधन ने टीवी के कुछ एंकर्स की सूची जारी की है कुछ ऐसे ही भाजपा डिजिटल के कुछ एंकर चेहरों की सूची जारी कर सकती है।
– नवेद शिकोह