मीडिया और मोदी की कुंडली किसने बांची?
कोविड19 से बचाव के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोवैक्सिन टीका लगवाया है। भारत बायोटेक के कोवैक्सिन को अमेरिका में मान्यता नहीं है। इसका मतलब हुआ कि अमेरिका नहीं मानता है कि प्रधानमंत्री को टीका लगा है। इस कारण कोवैक्सिन की दोनों खुराक लगवा चुके बहुत सारे लोग अमेरिका नहीं जा सकते हैं। प्रधानमंत्री के अमेरिका जाने की बात चली तो सोशल मीडिया पर यह एक बड़ा मुद्दा था। हर कोई जानना चाहता है कि आखिर इसका रास्ता क्या निकला। मैं भी इंतजार कर रहा था कि अखबारों और मीडिया से इस बारे में पता चलेगा। पत्रकार मित्र इसपर पोस्ट लिखेंगे और बताएंगे कि अमेरिका ने कोवैक्सिन को भी मान्यता दे दी आदि। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ है। अमेरिका में अगर यह मुद्दा नहीं था तो भी यह खबर है।
मैंने इस मामले को समझने की कोशिश की पर कहीं कुछ खास नहीं है। अगर कोवैक्सिन को दूसरे देशों में मान्यता नहीं मिली है तो भारत में लोगों को पता होना चाहिए और यह बताया जाना चाहिए कि भारत सरकार की नजर में उसकी स्थिति क्या है और जो इसकी दोनों खुराक लगवा चुके हैं उन्हें क्या करना है या नहीं करना है। विदेश जाना है तो क्या करें या सरकार इस मामले में क्या कर रही है। पर ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है और लोगों को खुद निपटने के लिए छोड़ दिया गया है। कहने की जरूरत नहीं है कि भारत में लोगों ने जो टीके लगवाए वह किसी पसंद या चुनाव के आधार पर नहीं है बल्कि मुफ्त में या पैसे देकर जिसे जो मिला लगवा लिया। कोविशील्ड की खुराक में अंतर बढ़ा दिया गया तो लोगों ने उसे भी मान लिया।
प्रधानमंत्री ने कोवैक्सिन लगवाई है तो मुमकिन है कुछ लोगों ने इसे प्राथमिकता दी हो पर अब ऐसे लोग मुश्किल में हैं। लेकिन अखबारों में इसकी चर्चा नहीं के बराबर है। कहने की जरूरत नहीं है कि कोवैक्सिन के बारे में जितनी चर्चा होगी उसकी साख उतनी कम होगी। इसलिए कोई चर्चा नहीं है और मेड इन इंडिया कोवैक्सिन को दूसरे टीकों के बराबर ही महत्व मिल रहा है। इस संबंध में मुझे डीएनए इंडिया की एक खबर मिली। इसके अनुसार न्यूयॉर्क शहर के नियम संयुक्त राष्ट्र में लागू नहीं होते हैं और प्रधानमंत्री अमेरिका के बुलावे पर नहीं, संयुक्त राष्ट्र के बुलावे पर यूएनजीए में भाग लेने गए हैं। इसलिए अमेरिका किसी राष्ट्राध्यक्ष को इसमें भाग लेने से नहीं रोक सकता है।
मैं नहीं जानता कि इस खबर में कितनी सत्यता है। ना यह मेरी चिन्ता है। लेकिन इस विषय पर खबर नहीं होना भी खबर है और भारतीय मीडिया की नालायकी का बढ़िया उदाहरण है। प्रधानमंत्री प्रेस कांफ्रेंस नहीं करते, उनका कोई प्रवक्ता नहीं है और मीडिया खुद सामान्य सवाल भी पूछकर बताने की कोशिश नहीं करता है। वे खाली विमान में अकेले यात्रा करते हैं विशेष फोटो जारी करते हैं और बगल की सीट पर अटैची रखी हुई थी जिसमें ताला लटक रहा था। यह कैसा प्रचार है, मैं नहीं जानता पर विमान में कुछ पत्रकारों को लटका लिया होता तो ये सब खबर मिल गई होती। वैसे भी इस खबर में ऐसा कुछ नहीं है कि सरकार का समर्थन या विरोध हो। वास्तविक स्थिति बताना तो सामान्य रिपोर्टिंग या रिपोर्टिंग की सामान्य जरूरत है पर मीडिया, सरकार और सरकारी पार्टी इसकी जरूरत भी नहीं समझते हैं।
आमतौर पर प्रचार और छवि का पूरा ख्याल रखने वाली मोदी सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी इस मामले में पूरी तरह चुप है। बोलने वाला चुप हो जाता है तो मरघट जैसा सन्नाटा छा जाता है। पर गोदी मीडिया अमेरिका के मैदान में लगे सफेद झंडे दिखाकर पूछ रहा है कि गंगा में तैरती लाश दिखाने वालों ने ये झंडे क्यों नहीं दिखाए। पर भाई ने खुद क्यों नहीं दिखाया और अभी कितने पैसे खर्च करके दिखा रहा है – दोनों नहीं बता रहा है। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने पहले ही ट्वीट कर दिया था कि माननीय प्रधानमंत्री से जवाब की अपेक्षा मत कीजिए। एमटीवी रोडीज और इंडियन आइडल जैसे लोकप्रिय टीवी कार्यक्रमों के निर्माता निखिल अल्वा ने ट्वीट किया था, “अपने प्रधानमंत्री की तरह मैंने भी अपना आत्मनिर्भर कोवैक्सिन टीका लगवाया था। अब मैं इरान और नेपाल के अलावा कुछ मुट्ठी भर देशों की ही यात्रा कर सकता हूं। इसीलिए मैं यह सुनकर उलझन में हूं कि हमारे प्रधानमंत्री अमेरिका कैसे जा रहे हैं। उनने असल में कौन सा टीका लगवाया है।”
आमतौर पर प्रधानमंत्री का अधिकृत और अनधिकृत प्रचार करने वाले लोग इस बार पहले जैसे तेवर में नहीं हैं। अबकी बार ट्रम्प सरकार का नारा लगवा चुके नरेन्द्र मोदी के अमेरिका दौरे पर मयंक छाया ने लिखा है, कमला हैरिस के दो ट्वीटर हैंडल से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ उनकी मुलाकात से संबंधित कोई ट्वीट नहीं है (जब लिखा था तब तक) जबकि प्रधानमंत्री ने उनके साथ चार तस्वीरें ट्वीट की हैं। मयंक छाया ने लिखा था कि कमला हैरिस के एक ट्वीटर अकाउंट से सात घंटे तक कोई ट्वीट नहीं हुआ था जबकि दूसरे से 10 घंटे तक कोई ट्वीट नहीं हुआ था। बेशक इसका कोई खास मतलब नहीं है। पर तथ्य तो तथ्य है और मीडिया 59 ग्राम गांजे पर तो दिन रात एक कर देता है लेकिन तीन टन की खेप पर चुप्पी लगा जाता है। सवाल यह है कि मीडिया और मोदी की राशि में इतना मेल कैसे और क्यों है?
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह
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