श्रम विभाग उत्तराखन्ड ने पत्रकारों व गैर पत्रकारों को मजेठिया वेतनमान दिलाने को एक कमेटी का गठन किया है। कमेटी के गठन की पहल ठीक है
लेकिन सवाल यह है कि जिन लोगों को इस कमेटी में रखा गया है क्या उन्हें मजेठिया व पत्रकारों की समस्याओं का ककहरा भी मालूम है। इस कमेटी में तथाकथित उन दो बड़े अखबारों से प्रतिनिध रखे गये हैं जिनके संस्थानों ने आज आज तक मजेठिया वेतनमान को लागू ही नही किया है । अखबार प्रबन्धकों ने जब सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नही किया तो क्या अदनी सी कमेटी पत्रकारों को मजेठिया वेतनमान दिला पायेगी। खैर जब कमेटी बन ही गयी है तो कमेटी के प्रतिनिधियों को मेरा सुझाव है कि सर्वप्रथम उन तथाकथित बड़े अखबारों के संस्थानों से सभी पत्रकारों व गैर पत्रकारों की सूची म॔गानी चाहिए जिन पर मजेठिया वेतनमान की सिफारिशों को लागू किया है। शायद ही कोई संस्थान समिति को लिस्ट दे पायेगा। यदि लिस्ट न दे तो पत्रकारों के वेतनमान की स्लिप मगंवा कर हकीकत जान सकते हैं। इसके अतिरिक्त जो संस्थान मजेठिया लागू नही कर रहै हैं उनके विज्ञापन सूचना व अन्य विभागो से तब तक जारी न हों जब तक कि उक्त संस्थान मजेठिया वेतनमान लागू नही कर देता। शायद यह उन संस्थानो पर भारी दबाव होगा।विश्वास तो नही है कि समिति इस तरह का कोई कड़ा फैसला ले पायेगी । वैसे भी कुछ सदस्य मैनेजमेन्ट के पिठ्ठू हैं वह क्यों चाहेंगे अखबार मालिकों के कानूनी शिकंजे में फंसने वाली कोई बात हो। जब मन्त्री जी के रहमो करम पर इस तरह की कमेटियों का गठन होगा तो प्रश्नचिन्ह लगना लाजिम है। वैसे भी आज तक पत्रकारों के लिए जितनी वेतनमान कमेटियां गठित हुयी हैं अखबार मालिकों ने उन्हें कभी लागू नही किया है।
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