• November 21, 2024

आखिरी सलाम बाऊ साहब..!! आप हमारी स्मृतियों में सदा रहेंगे…

 आखिरी सलाम बाऊ साहब..!! आप हमारी स्मृतियों में सदा रहेंगे…

सुबह जब मदन बाबा (Madan Mohan Pandey )  का फोन आया तो, मैं लोटस हास्पिटल आजमगढ़ जाने की तैयारी में था, जहाँ पिछले तीन दिनों से पिताजी भर्ती हैं.
उन्होंने कहा- ‘बाऊ साहब की तबियत खराब है..उनके बच्चे नागपुर ले जाने की तैयारी कर रहे हैं. जरा  Panchanand Tiwari Azamgarh से बात कर लीजिए. ईएमटी के साथी पंचानन ने इसके पहले भी बाऊ साहब को अपनी एंबुलेंस से वाराणसी भेजा था. मदन बाबा से बाऊ साहब की ख़बर सुनकर मन बहुत दुखी हुआ. साढ़े ग्यारह बजे ईएमटी एंबुलेंस बाऊ साहब को लेकर नागपुर के लिए निकल गयी, लगभग 4:30 बजे इलाहाबाद पहुँची ही थी कि बाऊ साहब ने अंतिम सांस गंगा- यमुना और गुप्त सरस्वती के संगम क्षेत्र में लिया. बाऊ साहब इस मृत्यु लोक से गोलोक के निकल लिए. एंबुलेंस उनके पार्थिव शरीर को लेकर उनके मातृभूमि खुदवल गांव निकट- चक्रपाणिपुर आजमगढ़ के लिए इलाहाबाद से वापस चल दी है. जिसके देर रात 10 बजे तक पहुँचने की उम्मीद है.
बाऊ साहब!
.मतलब, (गौरी शंकर सिंह)
जूनियर हाईस्कूल चक्रपाणिपुर के बाऊ साहब
(मुंशी जी, मास्साब,गुरुजी, अध्यापक).
मदन बाबा के गुरुदेव, और मेरे जैसों के अभिभावक..
कोई डेढ-दो दशक पुराना रिश्ता था, बाबू साहब और खुदवल गांव से, इस गांव में आने-जाने का एकमात्र कारण,यही बाऊ साहब ही थे.  न्यौता-हकारी होते-होते बाऊ साहब से हमारे संबंध कब याराने से हो गये थे पता ही नहीं चला.मदन बाबा और बाऊ साहब की जोड़ी गुरु और चेले से ज्यादा यारबाज सी थी.
यद्यपि वे हमारे पिता की उम्र के थे. और आज जब इस धरा धाम को अलविदा बोल गये 72 बरस के हो गयें थे.
बाऊ साहब हमारे हर दुख- सुख के साथी थे. एक दशक से ऊपर हमारे रिश्तों की गर्माहट हमने महसूस किया, इधर मैं अपने पत्रकारिता की सक्रियता को लेकर ज्यादा व्यस्त रहने लगा था. इसलिए मुलाकात कम होती थी, लेकिन बाऊ साहब का हालचाल जरूर मिलता था.
मेरे शादी में बाऊ साहब और मदन बाबा दोनों बारात में पहुंचे थे. और मदन बाबा बलिया वाली पुड़ी  पैक कराकर भी लाए थे. क्योंकि वह विशेष पाक शास्त्र की तकनीक से बनती हैं, जिससे वह बहुत मुलायम रहती है. और उनके आकार बहुत बड़े होते हैं.
..
घर पर हर छोटे- बड़े आयोजन पर बाऊ साहब हमारे अभिभावक होतें थे.
एक बार जब मैं अमर उजाला में जहानागंज बीट से रिपोर्टर था, तब, अमर उजाला,दैनिक जागरण और अन्य अखबारों का दफ्तर कला भवन में था. मैं कोई समाचार देने अमर उजाला के दफ्तर, अपनी दो पहिया गाड़ी  कला भवन के कैंपस में खड़ा कर पहुँचा ही था. आफिस से समाचार लिखकर जैसे ही बाहर निकला, शाम के लगभग 6 बजे थे कि-
अचानक से कलाभवन भरभरा कर गिरने लगा..
यह देख मारे घबराहट के कि- दोनो आफिस ( जागरण, उजाला)में सभी साथी समाचार लिख रहे हैं, कहीं खूद न समाचार बन जाएं..?
चिल्लाना शुरू किया..  आवाज सुनकर हमारे ब्यूरो चीफ हेमंत श्रीवास्तव (अब हिंदुस्तान लखनऊ) और क्राइम रिपोर्टर भारतेन्दु मिश्रा ( अब ब्यूरो चीफ अमर उजाला, मऊ) , बाहर निकले.. फिर देखते ही देखते दोनों आफिस के सभी पत्रकार मित्र जान बचाने के लिए बाहर भागे… फिर अचानक से एक बड़ा सा मलबा गिरा और  हमारी गाड़ी दब गयी. साथ में अन्य साथियों की भी.
यह समाचार जंगल की आग की तरह पूरे जिले में फैल गया. घर पर भी, सभी परेशान हो गये. माँ बहुत परेशान थी.
तभी बाऊ साहब और मदन बाबा मेरे घर पहुँच कर माँ को संतुष्ट किया की अरविंद ठीक हैं, हमारी बात हुई. और अपने मोबाइल से बात भी करवाई.
विकास गोठलवाल उस समय जिलाधिकारी थे. आवास पर पहुँच कर पूरी घटना बताया. और यह भी बताया कि मेरी मोटर साइकिल दब कर अस्ती पंजर में बदल गयी है. लेकिन बीमा है.
उन्होंने कहा..क्या चाहते हैं..?
मैंने कहा- मैं चलूगां कैसे.? फिर क्या..कलेक्टर विकास ने नेशनल इंसुरेंस के मैनेजर को फोन किया..
देखिए..
पत्रकार अरविंद सिंह का क्लेम कल परसो तक मिल जाना चाहिए. उधर से मैनेजर ने असमर्थता जताते हुए बोला,
सर!  दस दिन लग जाएगें.
गोठलवाल ने  सख्त लहजे में  कहा- फिर परसों के बाद आप की कंपनी की आफिस इस जिले में नहीं रहेगी. तुम्हे क्या करना हैं समझ लेना…
ठीक दूसरे दिन ही क्लेम के पैसे आ गएं.
यह समाचार सुनकर बाऊ साहब बहुत खुश हुए थे.
बहुत सी आत्मीय स्मृतियाँ, गौरी बाऊ साहब से जुड़ी हैं.
सभी याद आ रही है. बहुत मर्द आदमी थे.. उदररोग से पीड़ित थे. कल सांस का स्तर गिरने लगा था.
दिलेर.. और दोस्तबाज़.. यारबाज़…
अलविदा बाऊ साहब.. ईश्वर आप को अपने चरणों में जगह दे.और परिवार को यह विछोह सहने की शक्ति..
आखिरी सलाम..बाऊ साहब!!
Gauri Shankar Singh

पत्रकार अरविंद सिंह


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