पुरानी पीढ़ी के दिग्गज संपादक विजय सिंह विद्याव्रत का कुछ देर पहले गोंडा में निधन हो गया। वह 91 वर्ष के थे। इनदिनों वह पैतृक घर में निवास कर रहे थे। वह बाबू पारसनाथ सिंह, विद्याभास्कर और चंद्र कुमार जी जैसे दिग्गज संपादकों के साथ काम कर चुके थे। युग तुलसी पंडित रामकिंकर उपाध्याय के प्रवचन की रिपोर्टिंग उन्हीं की शुरू की गई परंपरा थी। अंग्रेजी से हिंदी और हिंदी से अंग्रेजी के वह उच्चकोटि के अनुवादक थे। कई भाषाओं के जानकार थे। नवजात पत्रकारों को वह एकमुश्त 20 से 25 अंग्रेजी के तार पकड़ा देते थे। अनुशासन के मामले में भी बहुत कड़क थे। खबर लिखना शुरू करते तो समापन होने पर ही कलम रुकती थी, लिखावट ऐसी कि कुछ ही आपरेटर उसे पढ़ पाते, एकदम चील-बिलऊआ लिखते थे। पिछले महीने उनका फोन आया कि मिलने का मन है, न जाने कब चल बसें। उनकी यह बात मर्मांतक थी। दो-तीन रोज बाद गोंडा में पटेल नगर स्तिथ उनके घर पहुंचे तो वाकई वह बहुत बुझे से लगे, शायद कुछ समय पहले पत्नी का देहावसान भी इसकी वजह रही होगी। निरा संकोची और अत्यंत शालीन विद्याव्रत जी से यह अंतिम मुलाकात थी। चलते वक्त उन्होंने कुछ किताबें दीं। साथ गए नवभारत टाइम्स के बाराबंकी रिपोर्टर चंद्रकांत मौर्य से भी खूब बोले बतियाये। अब लग रहा है कि उन्हें मृत्यु का पूर्व आभास हो गया था, तभी वह जल्द मिलने के लिए बुला रहे थे। परमात्मा उन्हें अपने श्रीचरणों में सबसे करीब स्थान प्रदान करें। विनम्र श्रद्धांजलि।
पत्रकार राजु मिश्र
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